आज के समाज की एक महत्वपूर्ण सच्चाई को उजागर करते हैं। "स्टेटस सिंबल" की मानसिकता हमारे समाज में गहराई से जड़ें जमा चुकी है, और यह केवल आर्थिक नहीं, बल्कि गहरे मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी डालती है।
eDishaa Counseling & Mental Wellness द्वारा
"हम घड़ी नहीं बेचते, हम स्टेटस बेचते हैं।"
यह वाक्य आज के उपभोक्तावादी समाज की असली मानसिकता को दर्शाता है। एक साधारण वस्तु जब "ब्रांड" का लेबल लेती है, तो वह व्यक्ति की पहचान, सम्मान और सामाजिक दर्जे का प्रतीक बन जाती है।
लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इस ‘स्टेटस सिंबल’ की दौड़ में हमारी मानसिक शांति और आत्म-संतोष कहां खो गए हैं?
आज के युवा और परिवार इस मानसिकता से ग्रसित हैं कि अगर उनके पास नवीनतम फोन, महंगी घड़ी, लग्ज़री कार या ब्रांडेड कपड़े नहीं हैं, तो वे "कमतर" हैं।
इस सोच का परिणाम है:
बैंक बैलेंस खाली है, लेकिन इंस्टाग्राम चमक रहा है। ये एक आम कहानी बन चुकी है।
कई लोग मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं क्योंकि वे उन चीज़ों को खरीदने के लिए मजबूर होते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत नहीं, केवल दूसरों को दिखाने के लिए।
ब्रांड्स ने हमारे मन में यह बैठा दिया है कि हमारा मूल्य हमारी वस्तुओं से है – न कि हमारे विचारों, मूल्यों या रिश्तों से। यह भ्रम "स्टेटस एंग्ज़ायटी" को जन्म देता है।
eDishaa Counseling Therapy का उद्देश्य है इस नकली चमक के पीछे छुपे असली दर्द को समझना। हम इस तरह की थेरेपी में लोगों को निम्न पहलुओं पर काम कराते हैं:
क्या मैं ये चीज़ें अपने लिए खरीद रहा हूँ, या दूसरों को दिखाने के लिए?
अगर जवाब "दूसरों के लिए" है, तो शायद वक्त है एक काउंसलर से बात करने का।
ब्रांड्स अगर अमीरी का प्रतीक बेचते हैं, तो eDishaa आत्मसम्मान, आत्मस्वीकृति और मानसिक संतुलन को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करता है।
आइए हम "स्टेटस सिंबल" को छोड़कर "मेंटल सिंबल" अपनाएं – जहाँ मानसिक स्वास्थ्य ही असली अमीरी है।
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