यह लिखने का उद्देश्य है 'जागरूकता', इसे पढ़ते हुए मन में खुदका का खयाल रखने की कोशिश करें।
रिश्ते हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में, उसके रिश्तों से बहुत कुछ समझा जा सकता है, चाहे वो रिश्ते हो जिन के साथ वह पैदा हुआ या वह रिश्ते जो बाद में बने हों।
मनोविज्ञान के अनुसार, संबंधों का एक व्यक्ति के समग्र विकास पर प्रभाव रहता है। बड़े होने के दौरान एक व्यक्ति जो रिश्ते देखता है और जो रिश्ते चुनता है, वह एक व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ बताते हैं।
अगर बच्चों को खाली पन्ने की तरह माना जाए तो वर्तमान का संपूर्ण व्यक्तित्व, उसके वातावरण का परिणाम ही होगा। एक बच्चे के रूप में किसी भी व्यक्ति के पास उन् रिश्तों को चुनने का विकल्प भी नहीं होता जिन्हे वह बड़े होने के दौरान देखते हैं और जिनसे सीखता हैं। बचपन में जब खाने जेसी साधारण बात का नियंत्रण एक बच्चे के पास नहीं होता तो किन बातों या लोगों का किस प्रकार उस पर प्रभाव हो रहा है अनजाने में वह कैसे नियंत्रण कर पाए।
अपने विचारधारा और व्यवहार के बारे में जिज्ञासा होने से वर्तमान व्यक्तित्व किन परिस्थितियों का परिणाम है वह जानना संभव है। समझने का दृष्टिकोण रखना बहुत जरूरी है, यह अंतर करना की किसी को दोष देने से भविष्य नहीं बदलेगा। प्रभावों को पहचानने का उद्देश्य जब बदलाव होता है तब दुख, ग्लानि, क्रोध का त्याग करके माफ करना संभव हो पाता है और उस क्षमा से ही भविष्य के बदलाव का रास्ता खुलता है।
अधिकतर लोग किसी एक परिस्थिति, व्यक्ति, जगह, समाज को दोषी मानकर छोटा रास्ता ले लेते हैं। रिश्तों में एक व्यक्ति को अपने दुख का दोषी मानने से खुद का मन लाइट महसूस तो होता है कुछ समय तक, पर फिर उस व्यक्ति के प्रति धीरे धीरे भाव बदलने लगते हैं, जो की आम बात है क्योंकि वही तो सब के लिए जिम्मेदार है। अगर वही एकमात्र जिम्मेदार है, तो एक बार सोचिए किस प्रकार के और कितने भाव होंगे ऐसे व्यक्ति के प्रति। जिस व्यक्ति के प्रति ऐसे भाव होंगे क्या उसके साथ रहने का मन करेगा? जिस व्यक्ति के व्यवहार से परेशानी हो रही, अब उसके व्यवहार के लिए जिन्हें जिम्मेदार माना जाता है, उनके प्रति जो भाव आयेंगे वह सोचिए I
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